श्री द्रोणाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय

प्रबंधकीय सन्देश

महाविद्यालय की गौरवमयी परम्परा का प्रबन्धकीय स्तम्भ मेरे लिए पितृ ऋण के रुप में आशीर्वाद है। महाविद्यालय के आधार स्तम्भ पूज्यनीय पिताजी श्री वेदप्रकाश अग्रवाल जी की धरोवर के रुप में महाविद्यालयी जिम्मेदारियों को एक कुटुम्ब की तरह सम्पोषित करता हूँ।

"ज्यो गूंगे मीठे फल को यूं अतंरग ही भावे"

इस गहन सूक्ति का अनुभव मैं अपने जीवन में द्रोणाचार्य महाविद्यालय के सचिव/प्रबन्धक पद का प्रतिनिधित्व करते समय करता हूँ, जिस प्रकार मूक व्यक्ति मीठे फल को खाने के बाद मिठास का वर्णन शब्दों में न करके आत्मा से प्रसन्न होकर करता है ठीक उसी प्रकार ज्ञान के इस मन्दिर में शिक्षा का श्रेष्ठ वातावरण बनाकर विद्वान विषय विशेषज्ञों से महाविद्यालय के छात्र/छात्राओं को उत्तम दिशा-निर्देशन कराके मुझे भी असीमित प्रसन्नता की अनुभूति होती है। प्रबन्धक पद की जिम्मेदारियाँ हमारे लिए न सिर्फ मानक उत्तरदायित्व है। बल्कि पूर्वजों की मर्यादा मान स्वाभिमान का प्रतीक है। महाविद्यालय के चतुर्मुखी विकास हेतु अपने उत्तरदायित्व निर्वहन में अपने हृदय की ध्वनि के इन शब्द को सदैव ध्यान में रखूगा।

About

"मैं पक्ष-विपक्ष मुक्त होकर।
प्रबन्धन में सत्य उतारुगाँ ।।
स्वीकृति यथार्थ को देकर भी।
मिथ्या से कभी न हाँरूगा।।


मैं सदैव त्रिभुवनधारी परम ब्रह्यपरमेष्वर से यही कामना करुंगा की शिक्षा प्रदाता के इस पथ पर सदैव मुझे अपने आशीर्वाद से अग्रसर करें जिससे एक श्रेष्ठ समाज का निर्माण हो सकें। मैं हृदय से छात्र/छात्राओं तथा महाविद्यालय के सभी सहयोगी जनमानस के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ |

भविष्य की शैक्षिक योजनाओं के
पथ पर अग्रसर
प्रबन्धक/सचिव
रजनीकान्त अग्रवाल